समान नागरिक संहिता को कानून बनाने की दिशा में उत्तराखंड सरकार एक कदम और आगे बढ़ गई है. उत्तराखंड सरकार ने शनिवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक के लिए मसौदा नियम तैयार करने के लिए नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है. समिति राज्य में UCC कानून के क्रियान्वयन को लेकर ठोस नियमावली बनाएगी.
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक के लिए नियम तैयार करने के लिए नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है. इस सप्ताह की शुरुआत में राज्य विधानसभा में ध्वमन पारित किया गया था. अधिकारियों ने बताया कि समिति की अध्यक्षता सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह करेंगे. राज्यपाल ने समिति के गठन को विधिवत स्वीकृति दे दी है. समिति राज्य में UCC कानून के क्रियान्वयन को लेकर ठोस नियमावली बनाएगी.
अपर सचिव कार्मिक,अपर सचिव पंचायती राज, अपर सचिव शहरी विकास और अपर सचिव वित्त, पुलिस उप महानिरीक्षक बिरेंद्रजीत सिंह, दून विश्वद्यालय कुलपति सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ इस समिति के सदस्य रहेंगे.
बता दें कि 8 फरवरी बुधवार को, एक विशेष सत्र के दौरान, उत्तराखंड विधानसभा ने दो दिवसीय चर्चा के बाद ध्वनि मत के साथ यूसीसी विधेयक पारित कर दिया. ध्वनि मत से पारित विधेयक मंगलवार को भाजपा-बहुमत विधानसभा में पेश किया गया था और विपक्ष ने सुझाव दिया था कि इसे पहले सदन की चयन समिति को भेजा जाना चाहिए.
यूसीसी पर नियम बनाने के लिए बनी कमेटी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस कोड को अन्य राज्यों के लिए अपने विवेक से अपनाने के लिए एक मॉडल ड्राफ्ट के रूप में पेश कर रहे हैं. इस विधेयक की विपक्षी दलों ने आलोचना की है, जिन्होंने आरोप लगाया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 जैसे मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.
यूसीसी विधेयक की आलोचना करते हुए, कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने उत्तराखंड को “हिंदुत्व ईरान के लिए परीक्षण प्रयोगशाला” करार दिया था. कार्ति ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा था, ”उत्तराखंड हिंदुत्व के लिए परीक्षण प्रयोगशाला है.”
यूसीसी पर मचा पर है घमासान
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी यूसीसी के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया उन्होंने कहा, उत्तराखंड यूसीसी विधेयक और कुछ नहीं बल्कि सभी के लिए लागू एक हिंदू कोड है. सबसे पहले, हिंदू अविभाजित परिवार को लेकर कोई बात नहीं है. यदि आप उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक समान कानून चाहते हैं, तो हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया है?
उन्होंने कहा कि द्विविवाह, हलाला, लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा का विषय बन गए हैं…लेकिन कोई यह नहीं पूछ रहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार को बाहर क्यों रखा गया है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को बाहर क्यों रखा गया है? यदि एक वर्ग या समुदाय को छूट दी गई है, तो फिर यह समान कानून कैसे हो सकता है.